Brahma Gayatri is in Sanskrit.
अथ ब्रह्मगायत्री
ॐ उत्तिष्ठंतु महाभूता ये भूता भूमिपालकाः ।
भूतानामविरोधेन ब्रह्मकर्म समाचरेत् ॥
आवाहयाम्यहं देवीं गायत्रीं सूर्यमण्डलात् ।
आगच्छ वरदे देवि त्रयक्षरे ब्रह्मवादिनी ॥
गायत्रि च्छंदसां मातर्ब्रह्मयोने नमोऽस्तु ते ॥
इत्यावाहनम् ॥
अथ वसिष्ठशापमोचनमंत्रः
ॐ अस्य श्रीवसिष्ठशापमोचनमंत्रस्य वसिष्ठ ऋषिरनुष्टुच्छंदः
श्रीविष्णुर्देवता वसिष्ठशापमोचनार्थे जपे विनियोगः ॥
अहो महानुभावे बहुरुपे दिव्ये सिद्धे सरस्वति ।
अजरेअमर चैव वसिष्ठशापमुक्ता भव ।
अथ करन्यासः
ॐ वाक् वाक् । ॐ प्राणः प्राणः । ॐ चक्षुश्र्चक्षुः ।
ॐ श्रोत्रं श्रोत्रम् ।
ॐ उदरे । ॐ ललाटे । ॐ नाभौ । ॐ हृदि । ॐ कंठें ।
ॐ शिरसि । ॐ शिखायाम् । ॐ कवचम् ।
अथ ब्रह्मगायत्री ।
ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् ।
अथ करन्यासः
ॐ भूः अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ भुवः तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ स्वः मध्यमाभ्यां नमः । ॐ तत्सवितुर्वरेण्यम् अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ भर्गो देवस्य धीमहि कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ धियो यो नः प्रचोदयात् करतलकरपृष्ठानभ्यां नमः ।
अथ हृदयादिन्यासः
ॐ भूः हृदयाय नमः । ॐ भुवः शिरसे स्वाहा ।
ॐ स्वः शिखायै वषट् ।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं कवचाय हुम् ।
ॐ भर्गो देवस्य धीमहि नेत्र त्रयाय वौषट् ।
ॐ धियो यो नः प्रचोदयात् अस्त्राय फट् ।
अथाक्षरन्यासः
ॐ तत् पादयोः । ॐ सवितुर्जंघयोः ।
ॐ वरेण्यं कटिदेशे । ॐ भर्गो नाभौ ।
ॐ देवस्य हृदये । ॐ धीमहि कण्ठे ।
ॐ धियो नासाग्रे । ॐ यो नेत्रयोः ।
ॐ नः ललाटे । ॐ प्रचोदयात् शिरसि ।
ॐ भूः । ॐ भुवः । ॐ स्वः । ॐ महः ।
ॐ जनः । ॐ तपः । ॐ सत्यम् ।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् ।
इति मंत्रः ।
ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भुर्भूवः स्वः ।
अथ पुनर्मंत्रः
ॐ क्लीं श्रीं ब्रह्मस्वरुपाय नमः ।
इति ब्रह्मगायत्री ॥
हिंदीमे अनुवादआवाहनम्
जो प्राणी भूमिके पालनेवाले हैं, वे उठें, प्राणियोंके अविरोधसे ब्रह्मकर्म आचरण करना चाहिये । देवी गायत्रीको मैं सूर्यमण्डलसे आवाहन करता हूँ, हे ब्रह्मवादिनी वरदायक देवी, आओ, गायत्री छन्दोंकी माता ब्रह्मकी अधिष्ठान तुमको मैं प्रणाम करता हूँ ।
इति आवाहन ।
अब वसिष्ठके शापमोचनका मंत्र कहते हैं -- इस वसिष्ठशापमोचन मंत्रके ऋषि वसिष्ठ है, छन्द अनुष्टुप् है, देवता विष्णु हैं, वसिष्ठशापमोचनमें विनियोग है ।
ॐ अहो महानुभाववाली बहुरुपा दिव्य सिद्ध सरस्वति ! तुम अजर अमर होके वसिष्ठजीके शापसे मुक्त हो ।
अब करन्यास कहते हैं, वाक् २ से वाणी, प्राण २ से नासिका, चक्षु २ से नेत्र, श्रोत २ से कान, उदर, ललाट, नाभि, हृदय, कण्ठ, शिर, शिखा, कवच, ॐकारनाम लेकर वही वही स्थान स्पर्श करें ।
अब ब्रह्मगायत्री कहते हैं--
स्थावर जंगमोंको प्रगट करके प्रेरणा करनेवाले अत्यन्त प्रकाशयुक्त उस वरणीय (प्रार्थना करने योग्य ) तथा सत्पुरुषोंसे निरन्तर ध्यान करने योग्य तथा उपासकोंके पाप नष्ट करनेवाले परमतेजका हम ध्यान करते हैं, जो हमारी बुद्धियोंको श्रेष्ठ कर्ममें प्रेरणा करे, जो भू लोकके वा प्राण, अपान, व्यान प्रकाशक हैं ।
अब करन्यास कहते हैं ---
ॐ भूः से अंगुष्ठ, ॐ भुवः से तर्जनी, ॐ स्वःसे मध्यमा, ॐ तत्सवितुर्वरेण्यसे अनामिका, ॐ भर्गो देवस्य, धीमहि से कनिष्ठिका, ॐ धियो यो न प्रचोदयात् से करतल, और करपृष्ठ स्पर्श करे ।
अब हृदयन्यास कहते हैं----
ॐ भू से हृदय, ॐ भुवः से शिर, ॐ स्वः से शिखा, ॐ तत्सवितुर्वरेण्य से कवच, ॐ भर्गो देवस्य धीमहिसे दोनों नेत्र, और मस्तक स्पर्श करे, ॐ धियो यो नः प्रचोदयात् से हथेलीमें दो अंगुली ताडन करें ।
अब अक्षरन्यास कहते हैं----
ॐ तत् से दोनों चरणोंको, ॐ सवितुः से दोनों जंघाओंको, ॐ वरेण्यंसे कमर, ॐ भर्गोसे नाभि, ॐ देवस्य से हृदय, ॐ धीमहिसे कण्ठ, ॐ धियोसे नासाका अग्रभाग, ॐ योसे दोनों नेत्र, ॐ नः से ललाट, ॐ प्रचोदयात् से शिरको स्पर्श करे, फिर ॐ भूः भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ।
फिर गायत्रीमन्त्र पढे---
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् ।
इति मंत्रः ।
इति ब्रह्मगायत्री ।
मंत्रार्थ कहते हैं--- ॐ आपो ज्योति-- वह ब्रह्म तेज जलस्वरुप है, ज्योति स्वरुप है, मोक्षस्वरुप है, ब्रह्मस्वरुप सृष्टिस्थितिप्रलयकारक ब्रह्मविष्णुरुद्रस्वरुप ॐ कारस्वरुप है, उसका ध्यान करते हैं, फिर मन्त्र कहते हैं, ॐ क्लीं श्रीब्रह्मस्वरुपको प्रणाम ।
इति ब्रह्मगायत्री ॥
Brahma Gayatri
अथ ब्रह्मगायत्री
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इसका प्रमाण किस वेद में या पुस्तक में है
ReplyDeleteBrahma Yantra helps promote creative power and leadership.
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