Shri SiddhiVinayak Stotra
Shri SiddhiVinayak Stotra is in Sanskrit. It is praise of God Ganesha. The devotee is very afraid of the troubles in his life; hence he is praising God SiddhiVinayak and asking him to remove all his troubles, difficulties in his life. There are 8 stanzas in this Stotra. He says to God that by name you are remover of the troubles, you are son of God Shiva, God Indra worship you, you have taken birth in the womb of Goddess Parvati because of she performed the vrata. You remove my troubles. Goddess Siddhi and Goddess Buddhi are always with you. The sunda-danda around your right shoulder looks beautiful. You are holding four weapons in your four hands Pasha, Ankush, Lotus and Parshu. Hey SiddhiVinayak make me free from troubles, difficulties I am facing in my life.
श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम्
विघ्नेश विघ्नचयखण्डननामधेय
श्रीशंकरात्मज सुराधिपवन्द्यपाद ।
दुर्गामहाव्रतफलाखिलमङ्गलात्मन्
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ १ ॥
सत्पद्मरागमणिवर्णशरीरकान्तिः
श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुङ्कुमश्रीः ।
दक्षस्तने वलयितातिमनोज्ञशुण्डो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ २ ॥
पाशाङ्कुशाब्जपरशूंश्र्च दधच्चतुर्भिर्दोर्भिश्र्च
शोणकुसुमस्त्रगुमाङ्गजातः ।
सिन्दूरशोभितललाटविधुप्रकाशो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ३ ॥
कार्येषु विघ्नचयभीतविरञ्चिमुख्यैः
सम्पूजितः सुरवरैरपि मोदकाद्यैः ।
सर्वेषु च प्रथममेव सुरेषु पूज्यो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ४ ॥
शीघ्राञ्चनस्खलनतुङ्गरवोर्ध्वकण्ठ
स्थूलेन्दुरुद्रगणहासितदेवसङ्घः ।
शूर्पश्रुतिश्र्च पृथुवर्तुलङ्गतुन्दो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ५ ॥
यज्ञोपवीतपदलम्भितनागराजो
मासादिपुण्यददृशीकृतऋक्षराजः ।
भक्ताभयप्रद दयालय विघ्नराज
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ६ ॥
सद्रत्नसारततिराजितसत्किरीटः
कौस्तुम्भचारुवसनद्वय ऊर्जितश्रीः ।
सर्वत्र मङ्गलकरस्मरणप्रतापो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ७ ॥
देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहर्ता
विज्ञानबोधनवरेण तमोऽपहर्ता ।
आनन्दितत्रिभुवनेश कुमारबन्धो
विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ८ ॥
॥ इति श्रीमुद्गलपुराणे श्रीसिद्धिविनायक स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
॥ श्रीसिद्धिविनायकार्पणमस्तु ॥
हिंदि अर्थ (सौ. पुराणकथा-अङ्क गीता प्रेस गोरखपूर)१) हे विघ्नेश ! हे सिद्धिविनायक ! आपका नाम विघ्न-समूहका खण्डन करनेवाला है । आप भगवान शंकरके सुपुत्र है । देवराज इन्द्र आपके चरणोंकी वन्दना करते है । आप पार्वतीजीके महान् व्रतके उत्तम फल एवं निखिल मङ्गलरुप है । आप मेरे विघ्नका निवारण करे ।
२) सिद्धिविनायक ! आपके श्रीविग्रहकी कान्ति उत्तम पद्मरागमणिके समान अरुण वर्णकी है । श्रीसिद्धि और बुद्धि देवियोंने अनुलेपन करके आपके श्रीअङ्कोंमे कुङ्कुमकी शोभाका विस्तार किया है । आपके दाहिने स्तनपर वलयाकार मुडा हुआ शुण्ड-दण्ड अत्यन्त मनोहर जान पडता है । आप मेरे विघ्न हर हर लीजिये । सिद्धिविनायक !
३) आप आपके चार हाथोंमें क्रमशः पाश, अङ्कुश, कमल और परशु धारण करते है, आप लाल फूलोंकी मालासे अलंकृत हैं और उमाके अङ्गसे उत्पन्न हुए है तथा आपके सिन्दूरशोभित ललाटमें चन्द्रमाका प्रकाश फैल रहा है, आप मेरे विघ्नोंका अपहरण कीजिये । सिद्धिविनायक !
४) सभी कार्योंमे विघ्न समूहके आ पडनेकी आशङ्कासे भयभीत हुए ब्रह्मा आदि श्रेष्ठ देवताओंने भी आपकी मोदक आदि मिष्टान्नोंसे भलीभॉंति पूजा की है । आप समस्त देवताओंमे सबसे पहले ही पूजनीय हैं । आप मेरे विघ्न समूहका निवारण कीजिये । सिद्धिविनायक !
५) आप जल्दी जल्दी चलने, लडखडाने, उच्चस्वरसे शब्द करने, ऊर्ध्वकण्ठ, स्थूल शरीर होनेसे चन्द्र, रुद्रगण आदि समस्त देवतासमुदायको हँसाते रहते हैं । आपके कान सूपके समान जान पडते हैं, आप मोटा गोलाकार और ऊँचा तुन्द धारण करते हैं । आप मेरे विघ्नोंका अपहरण कीजिये ।
६) आपने नागराजको यज्ञोपवितका स्थान दे रखा है, आप बालचन्द्रको मस्तकपर धारणकर दर्शनार्थियोंको पुण्य प्रदान करते हैं । भक्तोंको अभय देनेवाले दयाधाम विघ्नराज ! सिद्धिविनायक ! आप मेरे विघ्नोंको हर लीजिये !
७) आपका सुन्दर किरीट उत्तम रत्नोंके सार भागोंकी श्रेणियोंसे उद्दीप्त होता है । आप कुसुम्भी रंगके दो मनोहर वस्त्र धारण करते हैं, आपकी शोभा कान्ति बहुत बढी-चढी है और सर्वत्र आपके स्मरणका प्रताप सबका मङ्गल करनेवाला है । सिद्धिविनायक ! आप मेरे विघ्न हरण करे ।
८) सिद्धिविनायक ! आप देवान्तक आदि असुरोंसे डरे हुए देवताओंकी पीडा दूर करनेवाले तथा विज्ञानबोधके वरदानसे सबके अज्ञानान्धकारको हर लेनेवाले हैं ।
त्रिभुवनपति इन्द्रको आनन्दित करनेवाले कुमारबन्धो ! आप मेरे विघ्नोंका निवारण कीजिये ।
Shri SiddhiVinayak Stotra
श्री सिद्धिविनायक स्तोत्रम्
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