Saturday, July 3, 2021

ShriRamMangalaShashanam श्रीराममङ्गलाशासनम्

ShriRamMangalaShashanam श्रीराममङ्गलाशासनम्
ShriRamMangalaShaShanam is in Sanskrit. This is the praise of God Ram made by his devotee. It is written by Muni Nmaed as Jamata. All the virtues of God Ram are described in here. Many events in his life, are described here. By this MangalaShshanam   onecan have how was God Ram, how he performed his duties while living his life as at trustworthy and obedient son of king  Dashrath.  There are about 16 Shlokas in this MangalaShashanam and it is  desired all the  good to happen to God Ram.
ShriRamMangalaShashanam
श्रीराममङ्गलाशासनम्
मङ्गलं कोसलेन्द्राय महनीयगुणाब्धये ।
चक्रवर्तितनूजाय सार्वभौमाय मङ्गलम् ॥ १ ॥
वेदवेदान्तवेद्याय मेघश्यामलमूर्तये ।
पुंसां मोहनरुपाय पुण्यश्लोकाय मङ्गलम् ॥ २ ॥
विश्र्वामित्रान्तरङ्गाय मिथिलानगरीपतेः ।
भाग्यानां परिपाकाय भव्यरुपाय मङ्गलम् ॥ ३ ॥
पितृभक्ताय सततं भ्रातृभिः सह सीतया ।
नन्दिताखिललोकाय रामभद्राय मङ्गलम् ॥ ४ ॥
त्यक्तसाकेतवासाय चित्रकूटविहारिणे ।
सेव्याय सर्वयमिनां धीरोदयाय मङ्गलम् ॥ ५ ॥
सौमित्रिणा च जानक्या चापबाणासिधारिणे ।
संसेव्याय सदा भक्त्या स्वामिने मम मङ्गलम् ॥ ६ ॥
दण्डकारण्यवासाय खरदूषणशत्रवे ।
गृध्रराजाय भक्ताय मुक्तिदायास्तु मङ्गलम् ॥ ७ ॥
सादरं शबरीदत्तफलमूलाभिलाषिणे । 
सौलभ्यपरिपूर्णाय सत्त्वोद्रिक्ताय मङ्गलम् ॥ ८ ॥
हनुमत्समवेताय हरीशाभीष्टदायिने । 
बालिप्रमथनायास्तु महाधीराय मङ्गलम् ॥ ९ ॥
श्रीमते रघुवीराय सेतूल्लङ्घितसिन्धवे ।
जितराक्षसराजाय रणधीराय मङ्गलम् ॥ १० ॥
बिभीषणकृते प्रीत्या लङ्काभीष्टप्रदायिने ।
सर्वलोकशरण्याय श्रीराघवाय मङ्गलम् ॥ ११ ॥
आसाद्य नगरीं दिव्यामभिषिक्ताय सीतया ।
राजाधिराजराजाय रामभद्राय मङ्गलम् ॥ १२ ॥
ब्रह्मादिदेवसेव्याय ब्रह्मण्याय महात्मने ।
जानकीप्राणनाथाय रघुनाथाय मङ्गलम् ॥ १३ ॥
श्रीसौमजामातृमुनेः कृपयास्मानुपेयुषे ।
महते मम नाथाय रघुनाथाय मङ्गलम् ॥ १४ ॥
मङ्गलाशासनपरैर्मदाचार्यपुरोगमैः ।
सर्वैश्र्च पूर्वैराचार्यैः सत्कृतायास्तु मङ्गलम् ॥ १५ ॥
रम्यजामातृमुनिना मङ्गलाशासनं कृतम् ।
त्रैलोक्याधिपतिः श्रीमान् करोस्तु मङ्गलं सदा ॥ १६ ॥
॥ इति श्रीराममङ्लाशासनम् संपूर्णम् ॥  
  अनुवाद हिंदी
' प्रशंसनीय गुणोंके सागर कोसलेन्द्र श्रीरामचन्द्रजीका मङ्गल हो, चक्रवर्ती राजा दशरथके पुत्र मण्डलेश्र्वर श्रीरामचन्द्रजीका  मङ्गल हो । 
जो वेद-वेदान्तोंसे ज्ञेय हैं, मेघके समान श्याममूर्तिवाले हैं और पुरुषोंमें जिनका स्वरुप अत्यन्त मनोहर है, उन पुण्यश्लोक ( पवित्र यशवाले श्रीरामचन्द्रजीका मङ्गल हो । 
जो विश्र्वमित्र ऋषिके प्रिय और राजा जनकके भाग्योंके फलस्वरुप हैं, उन भव्यरुपवाले श्रीरामचन्द्रजीका मङ्गल हो ।  
जो सदा पिताकी भक्ति करनेवाले हैं, जो अपने भ्राताओं और सीताजीके साथ सुशोभित होते है और जिन्होंने समस्त लोकको आनन्दित किया है, उन श्रीरामभद्रका मङ्गल हो ।
जिन्होंने अयोध्या-निवासको छोडकर चित्रकूटपर विहार किया और जो सब यतियोंके सेव्य हैं, उन धीरोदय श्रीरामभद्रका मङ्गल हो ।
लक्ष्मण तथा जानकीजी सदा भक्तिपूर्वक जिनकी सेवा करते हैं, जो धनुष्य-बाण और तलवारको धारण किये हुए है, उन मेरे स्वामी श्रीरामभद्रका मङ्गल हो ।  
जिन्होंने दण्डकवनमें निवास किया है, जो खर-दूषणके शत्रू है और अपने भक्त गृध्रराजको मुक्ति देनेवाले हैं, उन रामभद्रका मङ्गल हो ।
जो आदरसहित शबरीके भी दिये हुए फल-मूलके अभिलाषी हुए, जो सुलभतासे पूर्ण ( अर्थात् थोडे ही परिश्रमसे प्राप्य ) हैं और जिनमे सत्त्वगुणका आधिक्य है, उन श्रीरामभद्रका मङ्गल हो ।
जो हनुमानजीसे युक्त है, हरीश ( सुग्रीव ) के अभीष्टको देनेवाले हैं और बालिको मारनेवाले हैं, उन महावीर श्रीरामभद्रका मङ्गल हो ।
जो सेतु बॉंधकर समुद्रको लॉंघ गये और जिन्होंने राक्षसराज रावणपर विजय पायी, उन रणधीर श्रीमान् रघुवीरका मङ्गल हो ।
जिन्होंने प्रसन्नतासे बिभीषणको उसका अभीष्ट लंकाका राज्य दे दिया और जो सब लोकोंको शरणमें रखनेवाले हैं, उन श्रीराघव रामभद्रका मङ्गल हो ।
वनसे दिव्य नगरी अयोध्यामें आनेपर जिनका सीताजीके सहित राज्याभिषेक हुआ, उन महाराजाओंके राजा श्रीरामभद्रका मङ्गल हो ।
जो ब्रह्मा आदि देवताओंके सेव्य हैं, ब्रह्मण्य ( ब्राह्मणों और  वेदोंकी रक्षा करनेवाले ) हैं, श्रीजानकीजीके प्राणनाथ है, उन रघुकुलके नाथ श्रीरामभद्रका मङ्गल हो ।
जो श्रीसम्पन्न सुन्दर आकारवाले जामात मुनिकी कृपासे हमलोगोंको प्राप्त हुए हैं, उन मेरे महान् प्रभु रघुनाथजीका मङ्गल हो ।
मेरे आचार्य जिनमें मुख्य हैं, उन अर्वाचीन आचार्यों तथा संपूर्ण प्राचीन आचार्योंने मङ्गलाशासनका निर्माण किया है । इससे प्रसन्न होकर तीनों लोकोंके पति श्रीमान् रामभद्र सदा ही मङ्गल करें ।    
    ShriRamMangalaShashanam श्रीराममङ्गलाशासनम्  

         



Custom Search

No comments: