Monday, June 3, 2019

SavitriDevi Stotram ब्रह्माकृत सावित्रीदेवी स्तोत्र


Brahmadev Krutam SavitriDevi Stotram 
SavitriDevi Stotram is in Sanskrit. This stotra is a stuti of Savitri Devi by God Brahmadev. This is from BrahmaVaivarta Purana, Prakruti-Khanda-Adhyaya 23/79-84. As advised by God ShriKrishna; God Brahmadev started to please Savitri Devi by this stotra. Savitri Devi is a mother of Vedas. Upasana of Savitri Devi is always done by chanting Gayatri Mantra for a specified times. God Brahma said: Devi you are Narayana's swaroopa, you are Narayani. You are because of God Narayana. Please bless me. Devi you are lustrous and powerful. You are filled with joy. You are goddess of Brahmins. Please bless me. You are always there, you are always happy. Please bless me with all your kindness. You are everything for Brahmins. You are best among all Mantras and all mantras are within you. By your blessings devotees get happiness and Moksha at ease. Please bless me. Devi you are Agni (fire) which burns the sins of Brahmins (devotees). You are giver of power of the Brahma. Please bless me. The devotee, who recites your name, becomes free from all his sins done by his Mind, Vani (talking) or Body. Thus here completes this stotra done by God Brahma. The Mantra for Savitri Devi is as under. " Shrim hrim klim saavitryai swaahaa " Mainly Upasana or devotion of Savitri Devi is done by chanting Gayatri Mantra.
ब्रह्माकृत सावित्रीदेवी स्तोत्र 
ब्रह्मोवाच
नारायणस्वरुपे च नारायणि सनातनि ।
नारायणसमुद्भूते प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ १ ॥
तेजःस्वरुपे परमे परमानन्दरुपिणि । 
द्विजातीनां जातिरुपे प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ २ ॥
नित्ये नित्यप्रिये देवि नित्यानन्दस्वरुपिणि ।
सर्वमङ्गलरुपेण प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ ३ ॥
सर्वस्वरुपे विप्राणां मन्न्रसारे परात्परे । 
सुखदे मोक्षदे देवि प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ ४ ॥
विप्रपापेध्मदाहाय ज्वलदग्निशिखोपमे ।
ब्रह्मतेजःप्रदे  देवि प्रसन्ना भव सुन्दरि ॥ ५ ॥ 
कायेन मनसा वाचा यत्पापं कुरुते द्विजः ।
तत् ते स्मरणमात्रेण भस्मीभूतं भविष्यति ॥ ६ ॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराणे प्रकृतिखण्डे श्रीब्रह्मदेवकृतं श्रीसावित्रीदेवी स्तोत्रं संपूर्णम् ॥ 
अध्याय २३ श्र्लोक ७९ ते ८४ ॥ 
 हिंदीमे अनुवाद
१) सुन्दरी !  तुम नारायणस्वरुपा एवं नारायणी हो । सनातनी देवि ! भगवान् नारायणसे ही तुम्हारा प्रादुर्भाव हुआ है । तुम मुजपर प्रसन्न होनेकी कृपा करो ।
२) देवि ! तुम परम तेजःस्वरुपा हो । तुम्हारे प्रत्येक अङ्गमे परम आनन्द व्याप्त है ।
द्विजातियोंके लिये जातिस्वरुपा सुन्दरी !  तुम मुजपर प्रसन्न होनेकी कृपा करो ।
३) सुन्दरी ! तुम नित्या, नित्यप्रिया तथा नित्यानन्दस्वरुपा हो । तुम अपने सर्वमङ्गलमय रुपसे मुझपर प्रसन्न हो जाओ । 
४) शोभने ! तुम ब्राह्मणोंके लिये सर्वस्व हो । तुम सर्वोत्तम एवं मन्त्रोंकी सार-तत्त्व हो । तुम्हारी उपासनासे सुख और मोक्ष सुलभ हो जाते है । तुम मुजपर प्रसन्न होनेकी कृपा करो ।
५) सुन्दरि ! तुम ब्राह्मणोंके पापरुपी ईंधनको जलानेके लिये प्रज्वलित अग्नि हो । ब्रह्मतेज प्रदान करना तुम्हारा सहज गुण है । तुम मुजपर प्रसन्न होनेकी कृपा करो ।
६) मनुष्य मन, वाणी अथवा शरीरसे जो भी पाप करता है, वे सभी पाप तुम्हारे नामका स्मरण करते भस्म हो जायेंगे ।    
  SavitriDevi Stotram 
ब्रह्माकृत सावित्रीदेवी स्तोत्र 


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