BhadraKali Stutihi
भद्रकालीस्तुतिः
This is BhadraKali Stuti. It is in Sanskrit and is done by Brahmdev and God Vishnu. This is from MahaBhagat Mahapuran. This stuti is for our protection. God Brahma and God Vishnu have also asked for the Blessing and protection from Goddess BhadraKli.
BhadraKali Stutihi
भद्रकालीस्तुतिः
ब्रह्मविष्णु ऊचतुः
नमामि त्वां विश्वकर्त्रीं परेशीं
नित्यामाद्यां सत्यविज्ञानरुपाम् ।
वाचातीतां निर्गुणां चातिसूक्ष्मां
ज्ञानातीतां शुद्धविज्ञानगम्याम् ॥ १ ॥
ब्रह्मा और विष्णु बोले—सर्वसृष्टिकारिणी, परमेश्र्वरी, सत्यविज्ञानरुपा, नित्या, आद्याशक्ति ! आपको हम प्रणाम करते हैं । आप वाणीसे परे हैं, निर्गुण और अति सूक्ष्म हैं, ज्ञानसे परे और शुद्ध विज्ञानसे प्राप्य हैं ॥ १ ॥
पूर्णां शुद्धां विश्वरुपां सुरुपां
देवीं वन्द्यां विश्ववन्द्यामपि त्वाम् ।
सर्वान्तःस्थामुत्तमस्थानसंस्था-
मीड़े कालीं विश्वसम्पालयित्रीम् ॥ २ ॥
आप पूर्णा, शुद्धा, विश्वरुपा,सुरुपा, वन्दनीया तथा विश्ववन्द्या हैं । आप सबके अन्तःकरणमें वास करती हैं एवं सारे संसारका पालन करती हैं । दिव्य स्थाननिवासिनी आप भगवती महाकालीको हमारा प्रणाम हैं । ॥ २ ॥
मायातीतां मायिनीं वापि मायां
भीमां श्यामां भीमनेत्रां सुरेशीम् ।
विद्यां सिद्धां सर्वभूताशयस्था-
मीडे कालीं विश्वसंहारकर्त्रींम् ॥ ३ ॥
महामायास्वरुपा आप मायामयी तथा मायासे अतीत हैं; आप भीषण श्यामवर्णवाली, भयंकर नेत्रोंवाली परमेश्र्वरी हैं । आप सिद्धियोंसे सम्पन्न, विद्यास्वरुपा, समस्त प्राणियोंके हृदयप्रदेशमें निवास करनेवाली तथा सृष्टिका संहार करनेवाली हैं, आप महाकालीको हमारा नमस्कार हैं । ॥ ३ ॥
नो ते रुपं वेत्ति शीलं न धाम
नो वा ध्यानं नापि मन्त्रं महेशि ।
सत्तारुपे त्वां प्रपद्ये शरण्ये
विश्वाराध्ये सर्वलोकैखेतुम् ॥ ४ ॥
महेश्वरी ! हम आपके रुप, शील, दिव्य धाम ध्यान अथवा मन्त्रको नहीं जानते । शरण्ये ! विश्वाराध्ये ! हम सारी सृष्टिकी कारणभूता और सत्तास्वरुपा आपकी शरणमें हैं । ॥ ४ ॥
द्यौस्ते शीर्षं नाभिदेशो नभश्च
चक्षूंषि ते चन्द्रसूर्यानलास्ते ।
उन्मेषास्ते सुप्रबोधो दिवा च
रात्रिर्मातश्चक्षुषोस्ते निमेषम् ॥ ५ ॥
मातः द्युलोक आपका सिर है, नभोमण्डल आपका नाभिप्रदेश है । चन्द्र, सूर्य और अग्नि आपके त्रिनेत्र हैं, आपका जगना ही सृष्टिके लिये दिन और जागरणका हेतु है और आपका आँखें मूँद लेना ही सृष्टिके लिये रात्रि है ॥ ५ ॥
वाक्यं देवा भूमिरेषा नितम्बं
पादौ गुल्फं जानुजङ्घस्तत्वधस्ते ।
प्रीतिर्धर्मोऽधर्मकार्यं हि कोपः
सृष्टिर्बोधः संहृतिस्ते तु निद्रा ॥ ६ ॥
देवता आपकी वाणी हैं, यह पृथ्वी आपका नितम्बप्रदेश तथा पाताल आदि नीचेके भाग आपके जङ्घा, जानु, गुल्फ और चरण हैं । धर्म आपकी प्रसन्नता और अधर्मकार्य आपके कोपके लिये है । आपका जागरण ही इस संसारकी सृष्टि है और आपकी नीद्रा ही इसका प्रलय है । ॥ ६ ॥
अग्निर्जिह्वा ब्राह्मणास्ते मुखाब्जं
संध्ये द्वे ते भ्रूयुगं विश्वमूर्तिः ।
श्वासो वायुर्बाहवो लोकपालाः
क्रीडा सृष्टिः संस्थितिः संहृतिस्ते ॥ ७ ॥
अग्नि आपकी जिह्वा है, ब्राह्मण आपके मुखकमल हैं । दोनों संध्याएँ आपकी दोनों भ्रुकुटियाँ हैं, आप विश्वरुपा है, वायु आपका श्वास है, लोकपाल आपके बाहु हैं और इस संसारकी सृष्टि, स्थिति तथा संहार आपकी लीला है ॥ ७ ॥
एवंभूतां देवि विश्वात्मिकां त्वां
कालीं वन्दे ब्रह्मविद्यास्वरुपाम् ।
मातः पूर्णे ब्रह्मविज्ञानगम्ये
दुर्गेऽपारे साररुपे प्रसीद ॥ ८ ॥
पूर्णे ! ऐसी सर्वस्वरुपा आप महाकालीको हमारा प्रणाम है । आप ब्रह्मविद्यास्वरुपा हैं । ब्रह्मविज्ञानसे ही आपकी प्राप्ति सम्भव है । सर्वसाररुपा, अनन्तस्वरुपिणी माता दुर्गे ! आप हमपर प्रसन्न हों । ॥ ८ ॥
॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे ब्रह्मविष्णुकृता भद्रकालीस्तुतिः सम्पूर्णा ॥
॥ इस प्रकार श्रीमहाभागवत महापुराणके अंतर्गत ब्रह्मा और विष्णुद्वारा की गयी भद्रकालीस्तुति सम्पूर्ण हुई ॥
BhadraKali Stutihi
भद्रकालीस्तुतिः
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