Thursday, October 2, 2014

Shri SantoshiMata Chalisa श्री संतोषीमाता चालीसा


Shri SantoshiMata Chalisa 
Shri SantoshiMata Chalisa is in Hindi. It is a praise of Goddess SantoshiMata. It is said that Goddess is Paravi wife of God Shiva; she is also Lakshmi and Saraswati also. She has killed the demons, Shumbha-Nishumbha, Raktbij, Mahishasur and other demons. Finally the creator is asking Goddess to bless him and to all those who recite/listen this Chalisa. It is said that all the wishes of the devotees are fulfilled by the blessings of the Goddess. The young ladies who wish to have a good husband; those who wish to have an issue, their wishes are also are fulfilled.
श्री संतोषीमाता चालीसा
दोहा
श्री गणपति पद नाय सिर धरि हिय शारदा ध्यान ।
सन्तोषी मां की करुँ कीरति सकल बखान ।
चौपाई
जय संतोषी मां जग जननी, खल मति दुष्ट दैत्य दल हननी ।
गणपति देव तुम्हारे ताता, रिद्धि सिद्धि कहलावहिं माता ॥ १ ॥
माता-पिता की रहौ दुलारी, कीरतिकेहि विधि कहूं तुम्हारी 
क्रीटमुकुट सिरअनुपम भारी, काननकुण्डल को छवि न्यारी ॥ २ ॥
सोहत अंग छटा छवि प्यारी, सुन्दर चीर सुनहरी धारी ।
आप चतुर्भुज सुघड विशाला, धारण करहु गले वन माला ॥ ३ ॥
निकट है गौ अमित दुलारी, करहु मयूर आप असवारी ।
जानत सबही आप प्रभुताई, सुर नर मुनि सब करहिं बडाई ॥ ४ ॥
तुम्हरे दरश करत क्षण माई, दुख दरिद्र सब जाय नसाई ।
वेद पुराण रहे यश गाई, करहु भक्त की आप सहाई ॥ ५ 
ब्रह्मा ढिंग सरस्वती कहाई, लक्ष्मी रुप विष्णु ढिंग आई ।
शिव ढिंग गिरजा रुप बिराजी, महिमा तीनों लोक में गाजी ॥ ६ ॥
शक्ति रुप प्रगटी जग जानी, रुद्र रुप भई मात भवानी ।
दुष्टदलन हित प्रगटीकाली, जगमग ज्योति प्रचंड निराली ॥ ७ ॥
चण्ड मुण्ड महिषासुर मारे, शुम्भ निशुम्भ असुर हनिडारे ।
महिमा वेद पुरातन बरनी, निज भक्तन के संकट हरनी ॥ ८ ॥
रुप शारदा हंस मोहिनी, निरंकार साकार दाहिनी ।
प्रगटाई चहुंदिश निज माया, कण कण में है तेज समाया ॥ ९ ॥
पृथ्वी सूर्य चन्द्र अरु तारे, तब इन्गीय क्रम बद्ध हैं सारे ।
पालन पोषण तुमहीं करता, क्षण भंगुर में प्राण हरता ॥ १० 
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावैं, शेष महेश सदा मन लावे ।
मनोकामना पूरण करनी, पाप काटनी भव बहतरनी ॥ ११ 
चित्त लगाय तुम्हें जो ध्याता, सो नर सुख सम्पत्ति है पाता ।
बन्ध्या नारि तुमहिं जो ध्यावैं, पुत्र पुष्प लता सम वह पावैं ॥ १२ ॥
पति वियोगी अति व्याकुलनारी, तुमवियोग अति 
व्याकुलयारी । 
कन्या जो कोई तुमको ध्यावै, अपना मनवांछित वर पावै ॥ १३ ॥
शीलवान गुणवान हो मैया, अपने जन की नाव खिवैया ।
विधि पूर्वक व्रत जो कोई करहीं, ताहिअमित सुख 
सम्पतिभरहीं ॥ १४ ॥
गुड और चना भोग तोहि भावै, सेवा करै सो आनन्द पावै 
श्रद्धा युक्त ध्यान जो धरहीं, सो नर निश्चय भव सों तरहीं ॥ १५ ॥
उद्यापन जो करहि तुम्हारा, ताको सहज करहु निस्तारा । 
नारि सुहागिन व्रत जो करती, सुखसम्पति सों गोदी भरती ॥ १६ ॥
जो सुमिरत जैसी मन भावा, सो नर वैसो ही फल पावा ।
सात शुक्र जो व्रत मन धारे, ताके पूर्ण मनोरथ सारे ॥ १७ ॥ 
सेवा करहि भक्ति युत जोई, ताको दूर दरिद्र दुख होई ।
जो जन शरण मात तेरी आवै, ताके क्षण में काज बनावै ॥ १८ ॥
जय जय जय अम्बे कल्यानी, कृपा करौ मोरी महारानी ।
जो कोई पढै मात चालीसा, तापे करहिं कृपा जगदीशा ॥ १९ ॥
नित प्रति पाठ करै इक बारा, सो नर रहै तुम्हरा प्यारा ।
नाम लेत ब्याधा सब भागे, रोग दोष कबहूँ नहीं लागे ॥ २० ॥
दोहा 
सन्तोषी मां के सदा बन्दहुँ पग निश वास । 
पूर्ण मनोरथ हों सकल मात हरौ भव त्रास ॥

॥ इती संतोषीमाता चालीसा संपूर्ण ॥   


Shri SantoshiMata Chalisa 
श्री संतोषीमाता चालीसा


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