Monday, December 22, 2014

Argala Stotra अर्गलास्तोत्रम्


Argala Stotra 
Argala Stotra is in Sanskrit. It is a praise of Goddess Durga. Argala Stotra is one of the stotras that are required to be recited before performing the Saptashati Patha.
अर्गलास्तोत्रम्
ॐ अस्य श्रीअर्गलास्तोत्रमन्त्रस्य ॥ विष्णुर्ऋषिः ॥
अनुष्टुप् छन्दः ॥ श्रीमहालक्ष्मीर्देवता ॥ 
श्रीजगदम्बाप्रीतर्थे । सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥
ॐ नमश्र्चण्डिकायै ॥
मार्कण्डेय उवाच ।
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥ १ ॥
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥ २ ॥
मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ३ ॥
महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ४ ॥
रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ५ ॥
शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ६ ॥
वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्व सौभाग्यदायिनि ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ७ ॥
अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ८ ॥ 
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ९ ॥ 
स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १० ॥
चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ ११ ॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १२ ॥
विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १३ ॥
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम् ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १४ ॥
सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १५ ॥
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १६ ॥
प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १७ ॥
चतुर्भुजे चतुर्वक्रसंस्तुते परमेश्र्वरि ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १८ ॥
कृष्णेन संस्तुते देवि शश्र्वद्भक्त्या सदाम्बिके ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ १९ ॥
हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्र्वरि ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २० ॥
इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्र्वरि ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २१ ॥
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २२ ॥ 
देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥ २३ ॥
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम् ॥ २४ ॥
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः ।
स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम् ॥ ॐ ॥ २५ ॥
इति देव्या अर्गलास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

Argala Stotra 
अर्गलास्तोत्रम्




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