ShriHanumatProkta Mantrarajatmak RamStav is in Sanskrit. It is a beautiful creation of God Hanuman. God Hanuman is a great devotee of God Ram. Hanuman in this RamStav says that I bow to God Ram who formed a military of monkeys and bears. King of the monkeys was Sugriva. God Ram defeated Ravana with the help of this army of monkeys and bears. Hanuman says that I bow to God Ram who had given kingdom of Lanka to Bibishanan as Bibishanan surrendered to him. Bibishanan told Ram he is surrendering and joining his army. Hanuman says that he is bowing to God Ram who is everywhere and he is greatest. He is being worshiped by Gods, Rushies-Munies. Hanuman says that he bows to God Ram who is in the rupa of God Vishnu and who is very kind and who helped Jatajut to attain Moksha. Fire, Moon and Sun are having the light, heat and Teja given by God Ram who is self-luminous. Hanuman says that I bow to self-luminous God Ram. Hanuman says that I bow to God Ram who killed cruel demons like Khara, Dushan and Trishira in the battle. Hanuman says that I bow to God Ram who removes false knowledge of his devotees and gives them true knowledge and powers so that they can achieve highest spiritual knowledge. Hanuman says that I bow to NarSinha rupi God Ram who is strong and powerful like lion. Hanuman says that I bow to God Ram whom God Indra, Sun, Fire, wind and God Yama are afraid of. Sins are always run away from God Ram (by reciting Name of God Ram sins are vanishes.). Hanuman says that I bow to God Ram who is very kind and who blesses his devotees who may or may not have reached higher spiritual level. Who recites this RamStava becomes a great devotee of God Ram.
श्रीहनुमत्प्रोक्त मन्त्रराजात्मक रामस्तव
तिरश्चामपि चारातिसमवायं समेयुषाम् ।
यतः सुग्रीवमुख्यानां यस्तमुग्रं नमाम्यहम् ॥ १ ॥
सकुदेव प्रपन्नाय विशिष्टामैरयच्छ्रियम् ।
बिभीषणायाब्धितटे यस्तं वीरं नमाम्यहम् ॥ २ ॥
यो महान् पूजितो व्यापी महान् वै करुणामृतम् ।
श्रुतं येन जटायोश्च महाविष्णुं नमाम्यहम् ॥ ३ ॥
तेजसाप्यायिता यस्य ज्वलन्ति ज्वलनादयः ।
प्रकाशयते स्वतन्त्रो यस्तं ज्वलन्तं नमाम्यहम् ॥ ४ ॥
सर्वतोमुखता येन लीलया दर्शिता रणे ।
रक्षसां खरमुख्यानां तं वन्दे सर्वतोमुखम् ॥ ५ ॥
नृभावं यः प्रपन्नानां हिनस्ति च तथा नृषु ।
सिंहः सत्त्वेष्विवोत्कृष्टस्तं नृसिंहं नमाम्यहम् ॥ ६ ॥
यस्माद्विभ्यति वातर्कज्वलनेन्द्राः समृत्यवः ।
भियं तनोति पापानां भीषणं तं नमाम्यहम् ॥ ७ ॥
परस्य योग्यतापेक्षारहितो नित्यमङ्गलम् ।
ददात्येव निजौदार्याद्यस्तं भद्रं नमाम्यहम् ॥ ८ ॥
यो मृत्युं निजदासानां नाशयत्यखिलेष्टदः ।
तत्रोदाहृतये व्याधो मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥ ९ ॥
यत्पादपद्मप्रणतो भवत्युत्तमपुरुषः ।
तमजं सर्वदेवानां नमनीयं नमाम्यहम् ॥ १० ॥
अहंभावं समुत्सृज्य दास्येनैव रघुत्तमम् ।
भजेऽहं प्रत्यहं रामं ससीतं सहलक्ष्मणम् ॥ ११ ॥
नित्यं श्रीरामभक्तस्य किंकरा यमकिंकराः ।
शिवमय्यो दिशस्तस्य सिद्धयस्तस्य दासिकाः ॥ १२ ॥
इमं हनुमता प्रोक्तं मन्त्रराजात्मकं स्तवम् ।
पठत्यनुदिनं यस्तु स रामे भक्तिमान् भवेत् ॥ १३ ॥
॥ इति श्रीहुनुमत्प्रोक्त मन्त्रराजात्मक रामस्तव संपूर्णम् ॥
श्रीहनुमत्प्रोक्त मन्त्रराजात्मक रामस्तव
हिंदी भावार्थः
१) अपने मुख्य शत्रु रावणके विनाशके लिये जिन्होने कपिराज सुग्रीवादि तिर्यक योनिमे उत्पन्न वानर-भालुओंकी सेना संगठित की उन अति उग्र भगवान् रामको मै नमस्कार करता हूँ । २) समुद्रतटपर आये बिभीषणको केवल एक बार ' मैं आपको शरण हूँ ' ऐसा कहनेपर जिन्होने लंका आदिके राज्यसहित अपार वैभवको प्रदान किया, उस महावीर श्रीरामको मैं प्रणाम करता हूँ ।
३) जो सर्वव्यापक हैं, सबसे महान् हैं और देवता, ऋषि-मुनियोंसे भी पूजित हैं तथा महान् कृपा-सुधा मूर्तिमान् स्वरुप हैं और उस कृपा-सुधासे जटायुतको भी जिन्होंने संसिक्तकर मुक्त कर दिया, उन महाविष्णुस्वरुप भगवान् रामको मैं प्रणाम करता हूं ।
४) अग्नि, चन्द्रमा और सूर्य आदि तेजस्वी ज्योतिष्पुंज जिनके तेजसे ही प्रकाशित एवं प्रज्वलित होते हैं और जो स्वयं अपने तेजसे प्रकाशित होते हैं, उन प्रज्वलित तेजोमय भगवान् रामको मै प्रणाम करता हूं ।
५) रणस्थलमें खर-दूषण, त्रिशिरा आदि राक्षसोंसे युद्ध करते समय जिन्होंने अपनी लीलासे अपना मुखमण्डल सभी ओर दिखलाया (और सबका नाश कर दिया), उन सर्वतोमुख भगवान् रामकी मैं वंदना करता हूं ।
६) शरणमें आते ही जो मनुष्योंके सामान्य मोहमय मनुष्यभावको नष्टकर उन्हें लोकोत्तर ज्ञान एवं विशिष्ट दिव्य शक्तियोंसे सम्पन्न कर देते हैं और जो सम्पूर्ण विश्वमे सिंहके समान बली हैं, उन नरसिंह भगवान् रामको मैं नमन करता हूँ ।
७) जिनसे वायु, सूर्य, अग्नि, इन्द्र, यम आदि सभी भयभीत रहते हैं और पाप तो उनके भयसे सदा ही दूर भागता है, उन भीषण रामको मैं नमस्कार करता हूँ ।
८) जो अपने भक्तोंकी किसी योग्यता अपेक्षा किये बिना ही अपने उदार-स्वभावके कारण सदा सब कुछ देते ही रहते हैं और नित्य मंगलस्वरुप हैं, उन परम भद्र-स्वरुप सौजन्यमूर्ति भगवान् रामको मैं प्रणाम करता हूँ ।
९) जो अपने भक्तोंके मृत्युका समूलोच्छेदन कर उसकी सारी अभिलाषा पूर्ण कर देते हैं, इस सम्बन्धमें वाल्मीकि जो पहले कभी व्याधका काम कर रहे थे, परम प्रमाण हैं । ऐसे मृत्युके भी मृत्यु भक्तवत्सल भगवान्को मैं प्रणाम करता हूँ ।
१०) जिनके चरणकमलो प्रणाम करते ही अधम पुरुष भी अति उत्तम पुरुश बन जाता है, उन जन्मादि षड्विकारोंसे मुक्त, सभी देवताओंके द्वारा वन्दनीय भगवान् रामकी मैं वन्दना करता हूँ ।
११) मै (हनुमान्) ब्रह्मैकात्म-भावका परित्याग कर दास्यभाव अर्थात् सेव्य-सेवककी भावनासे अहर्निश लक्ष्मणसहित श्रीसीतारामकी उपासना करता हूँ ।
१२) भगवान् श्रीरामके भक्तोंके लिये यमदूत भी सदाके लिये किंकर (दास, सेवक) बन जाते हैं, उसके लिये दसों दिशाएँ मंगलमयी हो जाती हैं और सभी सिद्धियाँ उसके चरणोमै लोटती है ।
१३) हनुमान्जीद्वारा प्रोक्त इस मन्त्रराजात्मकक स्तोत्रका नित्य पाठ करता है, वह भगवान् श्रीरामका भक्त हो जाता है ।
भावार्थ और मूल स्तोत्र कल्याण मई २०१० से आभार तथा धन्यवाद सहित लिया है ।
ShriHanumatProkta Mantrarajatmak RamStav
श्रीहनुमत्प्रोक्त मन्त्रराजात्मक रामस्तव
Custom Search
No comments:
Post a Comment