Pitru Sukta
Pitru Sukta is in Sanskrit. These are the Vaidik Mantras and are from Rugveda. 1 to 14 Ruchas or Mantras of 15th Sukta from Tenth Mandal of the Rugved are called as Pitru Sukta. In the first 8 Ruchas Pitras from different places are called for accepting Havi (in short it is the food offered to Pitrues as Naivedayam). Remaining 6 Ruchas are the prayer made to Agni to bring all the Pitrues for accepting Havi. Shankha Yamayan is the Rushi of the Pitru Sukta and Pitrues are devata, Chanda is Tristup (1-10, 12-14) and Jagati (13).
पितृ-सूक्त
उदीरतामवर उत् परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः ।
असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु ॥ १ ॥
इदं पितृभ्यो नमो अस्त्वद्य ये पूर्वासो य उपरास ईयुः ।
ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनं सुवृजनासु विक्षु ॥ २ ॥
आहंपितृन् त्सुविदत्रॉं अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः ।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वस्त इहागमिष्ठाः ॥ ३ ॥
बर्हिषदः पितर ऊत्यर्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम् ।
त आ गतावसा शंतमेनाऽथा नः शं योरऽपो दधात ॥ ४ ॥
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु ।
त आ गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान् ॥ ५ ॥
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्येमं यज्ञमभि गृणीत विश्र्वे ।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरुषता कराम ॥ ६ ॥
आसीनासो अरुणीनामुपस्थे रयिं धत्त दाशुषे मर्त्याय ।
पुत्रेभ्यः पितरस्तस्य वस्वः प्र यच्छत त इहोर्जं दधात ॥ ७ ॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः ।
तेभिर्यमः संरराणो हवींष्युशन्नुशद्भिः प्रतिकाममत्तु ॥ ८ ॥
ये तातृषुर्देवत्रा जेहमाना होत्राविदः स्तोमतष्टासो अर्कैः ।
आग्ने याहि सुविदत्रेभिरर्वाङ् सत्यैः कव्यैः पितृभिर्घर्मसद्भिः ॥ ९ ॥
ये सत्यासो हविरदो हविष्पा इन्द्रेण देवैः सरथं दधानाः ।
आग्ने याहि सहस्त्रं देववन्दैः परैः पूर्वैः पितृभिर्घर्मसद्भिः ॥ १० ॥
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदः सदः सदत सुप्रणीतयः ।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्यथा रयिं सर्ववीरं दधातन ॥ ११ ॥
त्वमग्न ईळतो जातवेदो ऽवाड्ढव्यानि सुरभीणि कृत्वी ।
प्रादाः पितृभ्यः स्वधया ते अक्षन्नद्धि त्वं देव प्रयता हवींषि ॥ १२ ॥
ये चेह पितरो ये च नेह यॉंश्च विद्म यॉं उ च न प्रविद्म ।
त्वं वेत्थ यति ते जातवेदः स्वधाभिर्यज्ञं सुकृतं जुषस्व ॥ १३ ॥
ये अग्निदग्धा ये अनग्निदग्धा मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते ।
तेभिः स्वराळसुनीतिमेतां यथावशं तन्वं कल्पयस्व ॥ १४ ॥
हिंदीमें अनुवाद
१ नीचे, ऊपर और मध्यस्थानोंमे रहनेवाले, सोमपान करनेके योग्य हमारे सभी पितर उठकर तैयार हों । यज्ञके ज्ञाता सौम्य स्वभावके हमारे जिन पितरोंने नूतन प्राण धारण कर लिये हैं, वे सभी हमारे बुलानेपर आकर हमारी सुरक्षा करें २ जो भी नये अथवा पुराने पितर यहॉंसे चले गये हैं, जो पितर अन्य स्थानोंमें हैं और जो उत्तम स्वजनोंके साथ निवास कर रहे हैं अर्थात् यमलोक, मर्त्यलोक और विष्णुलोकमें स्थित सभी पितरोंको आज हमारा यह प्रणाम निवेदित हो
३ उत्तम ज्ञानसे युक्त पितरोंको तथा अपांनपात् और विष्णुके विक्रमणको, मैंने अपने अनुकूल बना लिया है । कुशासनपर बैठनेके अधिकारी पितर प्रसन्नापूर्वक आकर अपनी इच्छाके अनुसार हमारे-द्वारा अर्पित हवि और सोमरस ग्रहण करें
४ कुशासनपर अधिष्ठित होनेवाले हे पितर ! आप कृपा करके हमारी ओर आइये । यह हवि आपके लिये ही तैयार की गयी है, इसे प्रेमसे स्वीकार कीजिये । अपने अत्यधिक सुखप्रद प्रसादके साथ आयें और हमें क्लेशरहित सुख तथा कल्याण प्राप्त करायें
५ पितरोंको प्रिय लगनेवाली सोमरुपी निधियोंकी स्थापनाके बाद कुशासनपर हमने पितरोंको आवाहन किया है । वे यहॉं आ जायँ और हमारी प्रार्थना सुनें । वे हमारी सुरक्षा करनेके साथ ही देवोंके पास हमारी ओरसे संस्तुति करें
६ हे पितरो ! बायॉं घुटना मोडकर और वेदीके दक्षिणमें नीचे बैठकर आप सभी हमारे इस यज्ञकी प्रशंसा करें । मानव-स्वभावके अनुसार हमने आपके विरुद्ध कोई भी अपराध किया होतो उसके कारण हे पितरो, आप हमें दण्ड मत दें ( पितर बायॉं घुटना मोडकर बैठते हैं और देवता दाहिना घुटना मोडकर बैठना पसन्द करते हैं )
७ अरुणवर्णकी उषादेवीके अङ्कमें विराजित हे पितर ! अपने इस मर्त्यलोकके याजकको धन दें, सामर्थ्य दें तथा अपनी प्रसिद्ध सम्पत्तिमेंसे कुछ अंश हम पुत्रोंको देवें
८ ( यमके सोमपानके बाद ) सोमपानके योग्य हमारे वसिष्ठ कुलके सोमपायी पितर यहॉं उपस्थित हो गये हैं । वे हमें उपकृत करनेके लिये सहमत होकर और स्वयं उत्कण्ठित होकर यह राजा यम हमारे-द्वारा समर्पित हविको अपनी इच्छानुसार ग्रहण करें
९ अनेक प्रकारके हवि-द्रव्योंके ज्ञानी अर्कोंसे, स्तोमोंकी सहायतासे जिन्हें निर्माण किया है, ऐसे उत्तम ज्ञानी, विश्र्वासपात्र घर्म नामक हविके पास बैठनेवाले ' कव्य ' नामक हमारे पितर देवलोकमें सॉंस लगनेकी अवस्थातक प्याससे व्याकुल हो गये हैं । उनको साथ लेकर हे अग्निदेव ! आप यहॉं उपस्थित होवें
१० कभी न बिछुडनेवाले, ठोस हविका भक्षण करनेवाले, द्रव हविका पान करनेवाले, इन्द्र और अन्य देवोंके साथ एक ही रथमें प्रयाण करनेवाले, देवोंकी वन्दना करनेवाले, घर्म नामक हविके पास बैठनेवाले जो हमारे पूर्वज पितर हैं, उन्हें सहस्त्रोंकी संख्यामें लेकर हे अग्निदेव ! यहॉं पधारें
११ अग्निके द्वारा पवित्र किये गये हे उत्तमपथ प्रदर्शक पितर ! यहॉं आइये और अपने-अपने आसनोंपर अधिष्ठित हो जाइये । कुशासनपर समर्पित हविर्द्रव्योंका भक्षण करें और ( अनुग्रहस्वरुप ) पुत्रोंसे युक्त सम्पदा हमें समर्पित करा दें
१२ हे ज्ञानी अग्निदेव ! हमारी प्रार्थनापर आप इस हविको मधुर बनाकर पितरोंने भी अपनी इच्छाके अनुसार उस हविका भक्षण किया । हे अग्निदेव ! ( अब हमारे-द्वारा ) समर्पित हविको आप भी ग्रहण करें
१३ जो हमारे पितर यहॉं ( आ गये ) हैं और जो यहॉं नही आये हैं, जिन्हें हम जानते हैं और जिन्हें हम अच्छी प्रकार जानते भी नहीं; उन सभीको, जितने ( और जैसे ) हैं, उन सभीको हे अग्निदेव ! आप भलीभॉंति पहचानते हैं । उन सभीकी इच्छाके अनुसार अच्छी प्रकार तैयार किये गये इस हविको ( उन सभीके लिये ) प्रसन्नताके साथ स्वीकार करें
१४ हमारे जिन पितरोंको अग्निने पावन किया है और जो अग्निद्वारा भस्मसात] किये बिना ही स्वयं पितृभूत हैं तथा जो अपनी इच्छाके अनुसार स्वर्गके मध्यमें आनन्दसे निवास करते हैं । उन सभीकी अनुमतिसे, हे स्वराट् अग्ने ! ( पितृलोकमें इस नूतन मृतजीवके ) प्राण धारण करने योग्य ( उसके ) इस शरीरको उसकी इच्छाके अनुसार ही बना दो और उसे दे दो
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1 comment:
Sir, thank you very much for your consideration and contribution to this topic. God bless you
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