Wednesday, June 4, 2014

Kali Chalisa काली चालीसा


Kali Chalisa
Kali Chalisa is in Hindi. Chalisa is collation of 40 stanzas (ovies) generally. However Kali Chalisa is having 54 stanzas. Kali Chalisa is a praise of Goddess Kali. It starts with very famous names of Kali. Each name describes the victorious deeds done by the Goddess for the wellbeing of people and Gods also. Kali, Kankalini, Kapalini, Karali, Shankar Priya, Aparna, Amba, Kapardini, Jagadamba, Aarya, Hala, Ambika, Maya, Katyayni, Uma, Jagjaya, Girija, Gouri, Durga, Chandi there are many other names in the Chalisa. It is said that Goddess gives happiness to the devotees and gives unhappiness to the cruel people. Goddess has killed demons Chand, Munda, Shumbha, Nishubha, Mahishasur and Raktbij and many other demons to protect gods and people. There are 52 very pious places/temples of Goddess in India. Devotee is asking Goddess to make him free from his sins and bless him. Further the writer of Kali Chalisa is asking Goddess to bless the devotee who recites Chalisa. 
काली चालीसा 
दोहा 
जय काली जगदम्ब जय, हरनि ओघ अध पुंज । 
वास करहु निज दास के, निशदिन हृदय-निकुंज ॥ 
जयति कपाली कालिका, कंकाली सुख दानि । 
कृपा करहु वरदायिनी, निज सेवक अनुमानि ॥ 
काली चालीसा 
जय जय जय काली कंकाली । जय कपालिनी, जयति कराली ॥ १ ॥ 
शंकर प्रिया, अपर्णा, अम्बा । जय कपर्दिनी, जय जगदम्बा ॥ २ ॥ 
आर्या, हला, अम्बिका, माया । कात्यायनी, उमा, जगजाया ॥ ३ ॥ 
गिरिजा, गौरी, दुर्गा, चण्डी । दाक्षाणायिनी, शाम्भवी, प्रचंडी ॥ ४ ॥ 
पार्वती, मंगला, भवानी । विश्र्वकारिणी, सती, मृडानी ॥ ५ ॥ 
सर्वमंगला, शैल नन्दिनी । हेमवती, तुम जगत वन्दिनी ॥ ६ ॥ 
ब्रह्मचारिणी, कालरात्रि जय । महारात्रि जय, मोहरात्रि जय ॥ ७ ॥ 
तुम त्रिमूर्ति, रोहिणी, कालिका । कूष्माण्डा, कार्तिकी, चण्डिका ॥ ८ ॥ 
तारा भुवनेश्र्वरी अनन्या । तुम्हीं छिन्नमस्ता, शुचिधन्या ॥ ९ ॥ 
धूमावती, षोडशी माता । बगला, मातंगी विख्याता ॥ १० ॥ 
तुम भैरवी मातु तुम कमला । रक्तदन्तिका, कीरति, अमला ॥ ११ ॥ 
शाकम्भरी, कौशिकी, भीमा । महातमा अग जग की सीमा ॥ १२ ॥ 
चन्द्रघण्टिका तुम सावित्री । ब्रह्मवादिनी मां गायत्री ॥ १३ ॥ 
रुद्राणी तुम कृष्ण पिंगला । अग्निज्वाल तुम सर्वमंगला ॥ १४ ॥ 
मेघस्वना, तपस्विनि, योगिनी । सहस्त्राक्षि तुम अगजग भोगिनी ॥ १५ ॥ 
जलोदरी, सरस्वती, डाकिनी । त्रिदशेश्वरी, अजेय लाकिनी ॥ १६ ॥ 
पुष्टितुष्टि, धृति, स्मृति, शिव दूती । कामाक्षी, लज्जा, आहूती ॥ १७ ॥ 
महोदरी, कामाक्षि हारिणी । विनायकी, श्रुति महा शाकिनी ॥ १८ ॥ 
अजा, कर्ममोही, ब्रह्माणी । धात्री, बाराही, शर्वाणी ॥ १९ ॥ 
स्कन्द मातु तुम सिंह वाहिनी । मातु सुभद्रा रहहु दाहिनी ॥ २० ॥ 
नाम रुप गुण अमित तुम्हारे । शेष शारदा बरणत हारे ॥ २१ ॥ 
तनु छवि श्यामवर्ण तव माता । नाम कालिका जग विख्याता ॥ २२ ॥ 
अष्टादश तव भुजा मनोहर । तिनमहं अस्त्र विराजत सुंदर ॥ २३ ॥ 
शंख चक्र अरु गदा सुहावन । परिघ भुशुण्डी घण्टा पावन ॥ २४ ॥ 
शूल बज्र धनुबाण उठाये । निधिचर कुल सब मारि गिराये ॥ २५ ॥ 
शुंभ निशुंभ दैत्य संहारे । रक्तबीज के प्राण निकारे ॥ २६ ॥ 
चौंसष्ठ योगिनी नाचत संगा । मद्यपान कीन्हेउ रण गंगा ॥ २७ ॥ 
कटि किंकिणी मधुर नूपुर धुनि । दैत्यवंश कांपत जेहि सुनि-सुनि ॥ २८ ॥ 
कर खप्पर त्रिशूल भयकारी । अहै सदा सन्तन सुखकारी ॥ २९ ॥ 
शव आरुढ नृत्य तुम साजा । बजत मृदंग भेरि के बाजा ॥ ३० ॥ 
रक्त पान अरिदल को कीन्हा । प्राण तजेउ जो तुम्हीं न चीन्हा ॥ ३१ ॥ 
लपलपाति जिह्वा तव माता । भक्तन सुख दुष्टन दुःख दाता ॥ ३२ ॥ 
लसत भाल सेंदुर को टीको । बिखरे केश रुप अति नीको ॥ ३३ ॥ 
मुंडमाल गल अतिशय सोहत । भुजामाल किंकण मनमोहत ॥ ३४ ॥ 
प्रलय नृत्य तुम करहु भवानी । जगदम्बा कहि वेद बखनी ॥ ३५ ॥ 
तुम मशान वासिनी कराला । भजत तुरत काटहु भवजाला ॥ ३६ ॥ 
बावन शक्ति पीठ तव सुन्दर । जहॉ बिराजत विविध रुप धर ॥ ३७ ॥ 
विन्ध्यवासिनी कहूँ बडाई । कहूँ कालिका रुप सुहाई ॥ ३८ ॥ 
शाकम्भरी बनी कहुँ ज्वाला । महिषासुर मर्दिनी कराला ॥ ३९ ॥ 
कामाख्या तव नाम मनोहर । पुजवहिं मनोकामना द्रुततर ॥ ४० ॥ 
चंड मुंड वध छिन महं करेउ । देवन के उर आनन्द भरेउ ॥ ४१ ॥ 
सर्व व्यापिनी तु माँ तारा । अरिदल दलन लेहु अवतारा ॥ ४२ ॥ 
खलबल मचत सुनत हुँकारी । अगजग व्यापक देह तुम्हारी ॥ ४३ ॥ 
तुम विराट रुपा गुणखानी । विश्व स्वरुपा तुम महारानी ॥ ४४ ॥ 
उत्पत्ति स्थिति लय तुम्हरे कारण । करहु दास के दोष निवारण ॥ ४५ ॥ 
माँ उर वास करहु तुम अंबा । सदा दीन जन की अवलंबा ॥ ४६ ॥ 
तुम्हारो ध्यान धरै जो कोई । ता कहँ भीति कतहुँ नहिं होई ॥ ४७ ॥ 
विश्वरुप तुम आदि भवानी । महिमा वेद पुराण बखानी ॥ ४८ ॥ 
अति अपार तव नाम प्रभावा । जपत न रहत रंच दुःख दावा ॥ ४९ ॥ 
महाकालिका जय कल्याणी । जयति सदा सेवक सुखदानी ॥ ५० ॥ 
तुम अनन्त औदार्य विभूषण । कीजिये कृपा क्षमिये सब दूषण ॥ ५१ ॥ 
दास जानि निज दया दिखावहु । सुत अनुमानित सहित अपनावहु ॥ ५२ ॥ 
जननी तुम सेवक प्रति पाली । करहु कृपा सब विधि माँ काली ॥ ५३ ॥ 
पाठ करै चालीसा जोई । तापर कृपा तुम्हारी होई ॥ ५४ ॥ 
काली चालीसा समाप्त 
 दोहा 
जय तारा जय दक्षिणा, कलावती सुखमूल । 
शरणागत भक्तन है, रहहु सदा अनुकूल ॥
Kali Chalisa 
काली चालीसा


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