Wednesday, August 17, 2016

NarayanKrut ShriKrishna Stotram नारायणकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रम्


NarayanKrut ShriKrishna Stotram 
NarayanKrut ShriKrishna Stotram is in Sanskrit. It is from Brahmavaivar Purana, BrahamaKhanda Adhyay 3. It is praise of God Shrikrishna by God Narayan.
नारायणकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रम्
नारायण उवाच
वरं वरेण्यं वरदं वराहं वरकारणम् ।
कारणं कारणानां च कर्म तत्कर्मकारणम् ॥ १ ॥
तपस्त्फलदं शश्र्वत्तपस्विनां च तापसम् ।
वन्दे नवघनश्यामं स्वात्मारामं नमोगरम् ॥ २ ॥
निष्कामं कामरुपं च कामघ्नं कामकारणम् ।
सर्वं सर्वेश्र्वरं सर्वबीजरुपमनुत्तमम् ॥ ३ ॥
वेदरुपं वेदबीजं वेदोक्तफलदं फलम् ।
वेदज्ञं तद्विधानं च सर्ववेदविदां वरम् ॥ ४ ॥
इत्युक्त्वा भक्तियुक्तश्र्च स उवास तदाज्ञया ।
रत्नसिंहासने रम्ये पुरतः परमात्मनः ॥ ५ ॥
नारायणकृतं स्तोत्रं यः श्रृणोति समाहितः ।
त्रिसंध्यं च पठेन्नित्यं पापं तस्य न विद्यते ॥ ६ ॥
पुत्रार्थी लभते पुत्रं भार्यार्थी लभते प्रियाम् ।
भ्रष्टराज्यो लभेद् राज्यं धनं भ्रष्टधनो लभेत् ॥ ७ ॥
कारागारे विपद्ग्रस्तः स्तोत्रेण मुच्यते ध्रुवम् ।
रोगात् प्रमुच्यते रोगी वर्षं श्रुत्वा तु संयतः ॥ ८ ॥
॥ इति ब्रह्मवैवर्ते ब्रह्नखंडे नारायणकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रमं संपूर्णम् ॥
( श्रीब्रह्मवैवर्त ब्रह्मखंड अध्याय ३--१०--१७ ) 
हिंदी अर्थ ( संक्षिप्त ब्रह्मवैवर्तपुराण गीताप्रेस गोरखपुर )
नारायण बोले
जो वर (श्रेष्ठ), वरेण्य (सत्पुरुषोंद्वारा पूज्य ), वरदायक, और वरकी प्राप्तीके कारण हैं, जो कारणोंके भी कारण, कर्मस्वरुप और उस कर्मके भी कारण हैं, तप जिनका स्वरुप हैं, जो नित्य-निरन्तर तपस्याका फल प्रदान करते हैं, तपस्वीजनोंमें सर्वोत्तम तपस्वी हैं, नूतन जलधरके समान श्याम, स्वात्माराम और मनोहर हैं उन भगवान् श्रीकृष्णकी मैं वन्दना करता हूँ । जो निष्काम और कामरुप हैं, कामनाके नाशक तथा कामदेवकी उत्पत्तिके कारण हैं, जो सर्वरुप, सर्वबीजस्वरुप, सर्वोत्तम एवं सर्वेश्र्वर हैं, जो वेदोंके बीज, वेदोक्त फलके दाता और फलरुप हैं, वेदोंके ज्ञाता, उसके विधानको जाननेवाले तथा सम्पूर्ण वेदवेत्ताओंके शिरोमणि हैं, उन भगवान् श्रीकृष्णको मैं प्रणाम करता हूँ ।
ऐसा कहकर वे नारायणदेव भक्तिभावसे युक्त होकर उनकी आज्ञासे उन परमात्माके सामने रमणीय रत्नमय सिंहासनपर विराजमान हो गये ।
जो पुरुष प्रतिदिन एकाग्रचित्त हो तीनों संध्याओंके समय नारायणद्वारा किये गये इस स्तोत्रको सुनता और पढता है, वह निष्पाप हो जाता है । उसे यदि पुत्रकी इच्छा हो तो पुत्र मिलता है और भार्याकी इच्छा हो तो प्यारी भार्या प्राप्त होती है ।

जो अपने राज्यसे भ्रष्ट हो गया है, वह इस स्तोत्रके पाठसे पुनः राज्य प्राप्त कर लेता है तथा धनसे वञ्चित हुए पुरुषको धनकी प्राप्ति हो जाती है । कारागारके भीतर विपत्तिमें पडा हुआ मनुष्य यदि इस स्तोत्रका पाठ करे तो निश्र्चय ही संकटसे मुक्त हो जाता है । एक वर्षतक इसका संयमपूर्वक श्रवण करनेसे रोगी अपने रोगसे छुटकारा पा जाता है ।    
NarayanKrut ShriKrishna Stotram नारायणकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रम्


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