Monday, August 3, 2020

RadhaKrutam ShriKrishna Stotram राधाकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रम्


RadhaKrutam ShriKrishna Stotram 
राधाकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रम्
राधिकोवाच
गोलोकनाथ गोपीश मदीश प्राणवल्लभ ।
हे दीनबन्धो दीनेश सर्वेश्र्वर नमोऽस्तु ते ॥ १ ॥
गोपेश गोसमूहेश यशोदानन्दवर्धन ।
नन्दात्मज सदानन्द नित्यानन्द नमोऽस्तु ते ॥ २ ॥
शतमन्योर्मन्युभग्न ब्रह्मदर्पविनाशक ।
कालीयदमन प्राणनाथ कृष्ण नमोऽस्तु ते ॥ ३ ॥
शिवानन्तेश ब्रह्मेश ब्राह्मणेश परात्पर ।
ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मज्ञ ब्रह्मबीज नमोऽस्तु ते ॥ ४ ॥
चराचरतरोर्बीज गुणातीत गुणात्मक ।
गुणबीज गुणाधार गुणेश्र्वर नमोऽस्तु ते ॥ ५ ॥
आणिमादिकसिद्धीश सिद्धेः सिद्धिस्वरुपक ।
तपस्तपस्विंस्तपसां बीजरुप नमोऽस्तु ते ॥ ६ ॥
यदनिर्वचनीयं च वस्तु निर्वचनीयकम् ।
तत्स्वरुप तयोर्बीज सर्वबीज नमोऽस्तु ते ॥ ७ ॥
अहं सरस्वती लक्ष्मीर्दुर्गा गङ्गा श्रुतिप्रसूः । 
यस्य पादार्चनान्नित्यं पूज्या तस्मै नमो नमः ॥ ८ ॥
स्पर्शने यस्य भृत्यानां ध्याने चापि दिवानिशम् ।
पवित्राणि च तीर्थानि तस्मै भगवते नमः ॥ ९ ॥
इत्येवमुक्त्वा सा देवी जले संन्यस्य विग्रहम् ।
मनःप्राणांश्र्च श्रीकृष्णे तस्थौ स्थाणुसमाा सती ॥ १० ॥
राधाकृतं हरेः स्तोत्रं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः । 
हरिभक्तिं च दास्यं च लभेद् राधागतिं ध्रुवम् ॥ ११ ॥
विपत्तौ यः पठेद् भक्त्या सद्यः सम्पत्तिमाप्नुयात् ।
चिरकालगतं द्रव्यं हृतं नष्टं च लभ्यते ॥ १२ ॥
बन्धुवृद्धिर्भवेत्तस्य प्रसन्नं मानसं परम् ।
चिन्ताग्रस्तः पठेद् भक्त्या परां निर्वृतिमाप्नुयात् ॥ १३ ॥
पतिभेदे पुत्रभेदे मित्रभेदे च संकटे । 
मासं भक्त्या यदि पठेत्सद्यः संदर्शनं लभेत् ॥ १४ ॥
भक्त्या कुमारी स्तोत्रं च श्रृणुयाद् वत्सरं यदि ।
श्रीकृष्णसदृशं कान्तं गुणवन्तं लभेद् ध्रुवम् ॥ १५ ॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते राधाकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
( श्रीकृष्णजन्मखण्ड २७‌ I १००--११४ )   
 
हिंदी मे अनुवाद ( संक्षिप्त ब्रह्मवैवर्तपुराण गीताप्रेस, गोरखपुरकी सहयोगसे )  
राधिका बोली
गोलोकनाथ ! गोपीश्र्वर ! मेरे स्वामिन् ! प्राणवल्लभ ! दीनबन्धो ! दीनेश्र्वर ! सर्वेश्र्वर ! आपको नमस्कार है । गोपेश्र्वर ! गोसमुदायके ईश्र्वर ! यशोदानन्दवर्धन ! नन्दनन्दन ! सदानन्द ! नित्यनन्द ! आपको नमस्कार है । इन्द्रके क्रोधको भङ्ग (व्यर्थ ) करनेवाले गोविन्द आपने ब्रह्माजीके दर्पका भी दलन किया है । कालियदमन ! प्राणनाथ ! श्रीकृष्ण ! आपको नमस्कार है । शिव और अनन्तके भी ईश्र्वर ! ब्रह्मा और ब्राह्मणोंके ईश्र्वर ! परात्पर ! ब्रह्मस्वरुप ! ब्रह्मज्ञ ! ब्रह्मबीज ! आपको नमस्कार है । चराचर जगत् रुपी वृक्षके बीज ! गुणातीत ! गुणस्वरुप ! गुणबीज ! गुणाधार ! गुणेश्र्वर ! आपको नमस्कार है । प्रभो ! आप अणिमा आदि सिद्धियोंके स्वामी हैं । सिद्धिकी भी सिद्धिरुप हैं । तपस्विन् ! आप ही तप हैं और आप ही तपस्याके बीज; आपको नमस्कार है । जो अनिर्वचनीय वस्तु है, वह सब आपका ही स्वरुप है । आप ही उन दोनोंके बीज हैं । सर्वबीजरुप प्रभो ! आपको नमस्कार है । मैं, सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, गङ्गा और वेदमाता सावित्री-ये सब देवियॉ जिनके चरणाविन्दोंकी अर्चनासे नित्य पूजनीया हुई हैं; उन आप परमेश्र्वरको वारंवार नमस्कार है । जिनके सेवकोंके स्पर्श और निरन्तर ध्यानसे तीर्थ पवित्र होते हैं; उन भगवान् को मेरा नमस्कार है ।
यों कहकर सती देवी राधिका अपने शरीरको जलमें और मन-प्राणोंको श्रीकृष्णमें स्थापित करके ठूँठे काठके समान अविचल भावसे स्थित हो गयीं । श्रीराधाद्वारा कीये गये श्रीहरिके इस स्तोत्रका जो मनुष्य तीनों संध्याओंके समय पाठ करता है, वह श्रीहरिकी भक्ति और दास्यभाव प्राप्त कर लेता है तथा उसे निश्र्चय ही श्रीराधाकी गति सुलभ होती है । जो विपत्तिमें भक्तिभावसे इसका पाठ करता है, उसे शीघ्र ही सम्पत्ति प्राप्त होती है और चिरकालका खोया हुआ नष्ट द्रव्य भी उपलब्ध हो जाता है । यदि कुमारी कन्या भक्तिभावसे एक वर्षतक प्रतिदिन इस स्तोत्रको सुने तो निश्र्चय ही उसे श्रीकृष्णके समान कमनीय कान्तिवाला गुणवान् पति प्राप्त होता है ।  
RadhaKrutam ShriKrishna Stotram 
राधाकृतं श्रीकृष्णस्तोत्रम्

            

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